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Channel: अमरपाल सिंह वर्मा  – Navbharat Times Readers Blog
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क्या कनार्टक फार्मूले से इस बार राजस्थान मेंं ‘रिवाज’ बदल पाएगी कांग्रेस?

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-अमरपाल सिंह वर्मा-
हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक में जीत से बाग-बाग हुई कांग्रेस ने राजस्थान मेंं फिर से सरकार बनाने के लिए पूरा जोर लगा रखा है। एक ओर जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से विभिन्न योजनाओं के जरिए लाभ पहुंचा कर आम वोटर को साधा जा रहा है, वहीं नेताओं को मतभेद भुलाकर पार्टी हित में काम करने के लिए आलाकमान ने संदेश दे दिया है। राज्य में हर बार सरकार बदलने के रिवाज को बदलने के लिए कांग्रेस ने सबसे बड़ा कदम विधानसभा चुनाव से तीन महीने पहले प्रत्याशियों की घोषणा करने के रूप में उठाया है। नई दिल्ली में राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े की मौजूदगी में उच्च स्तरीय बैठक में कनार्टक फार्मूले के तहत दो महीने पहले उम्मीदवारों की घोषणा करने का फैसला ले लिया गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या कनार्टक फार्मूले की बदौलत कांग्रेस इस बार राजस्थान मेंं ‘रिवाज’ बदल पाएगी?
पिछले तीन दशक से राजस्थान मेंं हर पांच साल बाद सरकार बदल जाती है। मतदाता एक बार कांग्रेस को मौका देते हैं तो एक बार भाजपा को सत्ता सौंपी जाती है। इस बार कांग्रेस ने राज्य में फिर से सरकार बनाने के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रखा है। आम लोगों को लाभान्वित करने के लिए अशोक गहलोत सरकार ने इतनी योजनाएं चलाई हैं, जिन्हें गिनना मुश्किल है। महंगाई राहत कैम्पों के जरिए आम आदमी को लाभान्वित किया जा रहा है। इन कैम्पों मेंं सीएम गहलोत खुद पहुंच रहे हैं।
कल दिल्ली मेंं हुई बैठक में हालांकि कांग्रेस ने किसी को सीएम फेस घोषित नहीं करने का निर्णय किया है लेकिन जाहिर है मौजूदा सीएम ही चुनाव में पार्टी का फेस होता है। इसलिए गहलोत ही चेहरा बने हुए हैं। पार्टी मेंं अब तक वह सब हो रहा है, जैसा गहलोत चाहते हैं। राजस्थान मेंं कनार्टक फार्मूला लागू करने का फैसला भी गहलोत के कहने पर हुआ है।
कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस की जीत मेंं उस फैसले की बड़ी भूमिका रही है, जिसमें वहां पार्टी प्रत्याशियों को चुनावी बिगुल बजने से पहले ही चुनावी मैदान मेंं उतार दिया गया था। यकीनन, पार्टी को इसका लाभ कनार्टक में सत्ता पर काबिज होने के रूप में मिला। अब कनार्टक के इसी फार्मूले को राजस्थान में लागू करने का फैसला कर लिया गया है।
सीएम अशोक गहलोत ने गत दिनों एक बयान में इस बात पर जोर दिया था कि दो महीने पहले प्रत्याशी घोषित कर दिए जाएं। गहलोत ने यह भी कहा था कि दिल्ली में टिकट वितरण को लेकर होने वाली लंबी बैठकों का सिस्टम भी बंद होना चाहिए, गहलोत की मंशा के मुताबिक कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान में तीन महीने पहले प्रत्याशियों की घोषणा करने का निर्णय कर लिया है।
राजस्थान में यह पहला मौका होगा, जब कोई पार्टी मतदान से इतना पहले प्रत्याशियों के नामों की घोषणा करेगी। राज्य में इससे पहले कभी भी इतना पहले प्रत्याशी घोषित नहीं किए गए।  वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और भाजपा ने उस समय प्रत्याशी घोषित किए थे, जब नामांकन भरने का सिलसिला अंतिम दौर मेंं था।  राजस्थान में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने सभी प्रत्याशी नामांकन प्रक्रिया शुरू होने के बाद ही घोषित किए थे। प्रदेश मेंं तब 12 नवंबर से नामांकन प्रक्रिया शुरू हुई और इसके बाद 15 नवंबर को कांग्रेस ने पहली सूची जारी कर 152 प्रत्याशियों के नाम घोषित किए। इसके उपरांत 17 नवंबर को दूसरी सूची जारी की गई। कांग्रेस ने प्रत्याशियों की तीसरी सूची नामांकन के अंतिम दिन से महज एक दिन पहले 18 नवंबर को जारी की। इसका खामियाजा कांग्रेस को बड़ी तादाद में बागी उम्मीदवारों के रूप में भुगतना पड़ा था, जो पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों की हार की वजह बने।
इस बार ऐसा नहीं हो, इसलिए राज्य में कनार्टक की तर्ज पर रणनीति बनाई जा रही है। कांग्रेस कनार्टक चुनाव मेंं इस तरह के सफल प्रयोग कर चुकी है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव का एलान होने से पूर्व ही पार्टी ने वहां 124 उम्मीदवारों के नाम घोषित कर दिए थे। इसके उपरांत 42 और प्रत्याशियों के नाम घोषित किए गए।  इस प्रकार जब तक कनार्टक में चुनावी रणभेरी बजती, तब तक कांग्रेस ने वहां 166 उम्मीदवार मैदान में उतार दिए थे। इसके विपरीत भाजपा इस काम में पिछड़ गई। इसका खामियाजा भाजपा को करारी हार के रूप में चुकाना पड़ा।
राजस्थान मेंं कर्नाटक फार्मूले को लागू करके कांग्रे्रस कई फायदों की उम्मीद कर रही है। पार्टी को लग रहा है कि तीन महीने पहले जिन प्रत्याशियों के नाम घोषित हो जाएंगे, वह दूरदराज के मतदाता तक पहुंचने में पूरी तरह कामयाब होंगे। प्रत्याशियों के पास प्रचार के लिए खूब समय होगा। बगावत की स्थिति में बागियों को मनाया जा सकेगा।  कांग्र्रेस ने यह फैसला लेकर भाजपा के सामने चुनौती पेश कर दी है। अब देखना भी दिलचस्प होगा कि भाजपा इसका क्या तोड़ निकालती है?
(लेखक राजस्थान के वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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