-अमरपाल सिंह वर्मा-
स्वतंत्र पत्रकार
विभिन्न बीमारियां समूचे विश्व मेंं चिंता का विषय बनी हुई हैं। विभिन्न स्तरों पर बीमारियों की चुनौतियों से जूझने के प्रयास हो रहे हैं लेकिन बीमारियों के रूप में नित=नए खतरे सामने आ रहे हैं। दुनिया में संक्रामक रोग तो चिंता की वजह बने ही हैं, इसके साथ-साथ अब नॉन कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी) अर्थात गैर-संचारी रोग भी चुनौती बनते जा रहे हैं। मानव स्वास्थ्य को जितना खतरा जीवन शैली से जुड़े गैर संचारी रोगों से है, उससे ज्यादा खतरा इस बात से है कि समुदाय में गैर संचारी रोगों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है, जितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए। गैर संचारी रोगों के कारण आम लोगों की जिंदगी दांव पर लगी हुई है।
यह स्थिति तब है, जब विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ)अपनी एक रिपोर्ट में बता चुका है कि दुनिया में कुल होने वाली मौतों में से प्रति वर्ष 75 प्रतिशत मौतें गैर-संचारी रोगों के कारण होती हैं। गैर संचारी रोग जिस तेजी से बढ़ रहे हैं और जितनी बड़ी तादाद मेंं यह मौतों की वजह बन रहे हैं, वह निश्चय ही चिंता का विषय होना चाहिए। इस बारे मेंं आम लोगों को जागरुक किया जाना चाहिए ताकि वह इससे बच सकें।
डब्ल्यूएचओ ने वर्ष 2022 तक विश्व के जो स्वास्थ्य आंकड़े हासिल किए हैं, उनसे यह पता चलता है कि गैर संचारी रोगों का कितना बड़ा खतरा मंडरा रहा है। यानी यह रोग जिंदगियों, स्वास्थ्य प्रणालियों, समुदायों, अर्थ व्यवस्थाओं और समाज को लगातार और बहुत बड़ा नुकसान पहुचा रहे हैं।
डब्ल्यूएचओ ने चेताया है कि कुल स्वास्थ्य प्रगति के बावजूद गैर संचारी रोगों की वजह से हो रहे भारी नुकसान के बड़े खतरे हैं। अगर यही चलन जारी रहा तो वर्ष 2050 तक हृदय संबंधी बीमारियों, कैंसर, डायबिटीज और सांस संबंधी बीमारियां हर साल होने वाली लगभग नौ करोड़ मौतों में से 86 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार होंगी।
डब्ल्यूएचओ मानव स्वास्थ्य पर मंडराते खतरों से आगाह करते हुए समय-समय पर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट जारी करता है। ऐसी रिपोर्ट जारी करने के पीछे उद्देश्य यही होता है कि लोग इस बारे में ज्यादा से ज्यादा जानें और जागरुक हो कर बीमारी से बचने के कदम उठाएं लेकिन अफसोस का विषय है कि स्वास्थ्य से जुड़ी ऐसी महत्वपूर्ण रिपोर्टें अखबारों के किसी कोने में दबकर रह जाती हैं। इनकी ओर जितना ध्यान जाना चाहिए, वह नहीं जाता है।
गैर संचारी रोगों के मामले में भारत की स्थिति भी चिंताजनक है। यहां लोगों में डायबिटीज, हार्ट डिजीज, कैंसर, फेफड़ों से संबंधित बीमारियां बढ़ रही हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक भारत में 2019 में हुई कुल मौतों में से 66 प्रतिशत मौतों के लिए गैर संचारी रोग ही जिम्मेदार रहे। डायबिटीज, हार्ट डिजिज, कैंसर, फेफड़ों से संबंधित ये रोग संक्रामक नहीं हैं, फिर भी बढ़ रहे हैं और मौत का कारण बन रहे हैं। तम्बाकू एवं शराब पीने, शारीरिक गतिविधियों का अभाव और अच्छे आहार की कमी ऐसे मुख्य कारण हैं, जिनकी वजह से लोगों का जीवन जोखिम में पड़ रहा है। डॉक्टर देश में फैल रहे गैर संचारी रोगों की मुख्य वजह खराब जीवन शैली को मानते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चों एवं बड़ों में बढ़ते मोटापे के कारण उन बीमारियों का जोखिम बढ़ रहा है, जो जीवन शैली से जुड़ी हुई हैं। लोग पैदल चलना ही छोड़ गए हैं। आरामतलब जीवन उन्हें एक स्थान पर पड़े रहने का आदी बना रहा है। समय-समय पर जांच के अभाव में लोगों को इन बीमारियों की भनक भी नहीं पड़ पाती। जब तक मालूम पड़ता है, तब तक कई बार स्थिति गंभीर हो चुकी होती है। मोटापे की वजह से न केवल बड़ों बल्कि बच्चों में भी लीवर समस्याएं, डायबिटिज, हाई ब्लड प्रेशर, हाई कोलेस्ट्रोल, पित्ताशय की पत्थरी की दिक्कतें सामने आ रही हैं।
गैर संचारी रोगों का खतरा कितना बढ़ रहा है, इसका अंदाजा डब्ल्यूएचओ की चिंताओं से लगाया जा सकता है। डब्ल्यूएचओ की एक नई रिपोर्ट दर्शाती है कि निम्न और निम्नतर से मध्य आय वाले देशों में प्रति वर्ष प्रति व्यक्ति एक डॉलर से भी कम अतिरिक्त निवेश करके, वर्ष 2030 तक लगभग 70 लाख मौतों की रोकथाम की जा सकती है। डब्ल्यूएचओ ने गैर संचारी बीमारियों की रोकथाम व उपचार के नजरिये से तत्काल उपाय किये जाने की वकालत की है क्योंकि
विश्व में हर 10 में से सात मौतें गैर संचारी रोगों के कारण होती हैं, जिनमें हृदय रोग, डायबिटीज, कैंसर और श्वसन तंत्र रोगों सहित अन्य बीमारियां शामिल हैं। दुखद पहलू है कि इसके बावजूद, निम्नतर-मध्य और कम आय वाले देशों में इन बीमारियों के असर को कम आंका जाता है। डब्ल्यूएचओ का मानना है कि बांग्लादेश, भारत, नेपाल, मिस्र, इण्डोनेशिया, बोलिविया, रवाण्डा, सीरिया, वियतनाम, मोरक्को, मोलदोवा सहित अन्य देशों में ये बीमारियां, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक नजरिये से एक बड़ा बोझ हैं। 30 से 69 वर्ष आयु वर्ग में, गैर संचारी रोगों के कारण असामयिक होने वाली 85 फीसदी मौतें निम्न और मध्य-आय वाले देशों में होती हैं. इसके दृष्टिगत रिपोर्ट में गैर संचारी बीमारियों की रोकथाम और उनके प्रबन्धन में तत्काल निवेश की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि गैर संचारी बीमारियों यानि एनसीडी का भीषण बोझ सहने वाले देश यदि उचित रणनीति अपनाएं तो बीमारी की दिशा बदल सकते हैं और अपने नागरिकों के लिये ठोस स्वास्थ्य व आर्थिक प्रगति सुनिश्चित कर सकते हैं। साथ ही, तम्बाकू सेवन और उसके नुकसानदेह इस्तेमाल में कमी लाने, आहार बेहतर बनाने, शारीरिक गतिविधियां बढ़ाने, हृदयवाहिनी व मधुमेह जैसी बीमारियों के जोखिमों में कमी लाने और सर्वाइकल कैंसर की रोकथाम करने जैसे अन्य उपाय भी किए जा सकते हैं। अगर इस दिशा में व्यापक काम किया जाए तो जहां गैर संचारी बीमारियों से लोगों की रक्षा करना संभव है, वहीं इससे भविष्य में कोविड-19 जैसी संक्रामक बीमारियों का असर भी कम करने में मदद मिल सकती है। यदि किसी भी देश के आम लोग स्वस्थ होंगे तो बीमारियों पर होने वाले खर्च में कमी आएगी। जो धन अब बीमारियों पर खर्च करना पड़ रहा है, वह विकास पर व्यय किया जा सकेगा। इससे न केवल लोग स्वस्थ एवं दीर्घायु होंगे, बल्कि उनके लिए जरूरी सुविधाएं भी मुहैया कराई जा सकेंगी। असल जरूरत इस दिशा में कदम बढ़ाने की है।
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खराब जीवन शैली के कारण जिंदगी दांव पर
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