-अमरपाल सिंह वर्मा-
समूची दुनिया मेंं हर साल लाखों लोगों की मौत हृदय रोग की वजह से हो जाती है। भारत में ह्दय रोग और इससे होने वाली मौतों पर काबू पाना चुनौती बना हुआ है। वर्ष 2000 से 2019 तक 20 सालों में भारत में हृदय रोग ही सबसे ज्यादा मौतों का कारण बना है। यह आंकड़ा डराने वाला है कि वर्ष 2021 में हृदय रोगों की वजह से दुनिया में 2 करोड़ लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है।
आंकड़ों पर नजर डालें तो समूचे विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग हृदय रोगों के शिकार हैं। सन् 2021 में करीब 2 करोड़ पांच लाख लोगों की मौत के लिए हृदय रोग को ही जिम्मेदार माना गया है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन और अन्य हृदय रोग को लेकर शोध एवं अनुसंधान करने वाली दुनिया की बड़ी संस्थाएं हृदय रोग के बारे मेंं समय-समय पर रिपोर्ट जारी करती रहती हैं। यह रिपोर्ट न केवल डराती हैं बल्कि हमेंं हृदय रोग से बचने के लिए सचेत भी करती हैं। सवाल यह उठता है कि सरकारों द्वारा हर साल एक बहुत बड़ी रकम बीमारियों पर खर्च करने के बावजूद रोगों पर काबू पाना संभव क्यों नहीं हो रहा है?
यह एक बड़ा सवाल है, जिस पर हर किसी को चिंतन करने की जरूरत है। वल्र्ड हार्ट फैडरेशन की इसी साल जारी एक दुनिया मेंं हृदय रोग के निरंतर बढ़ते खतरें के बारे में सचेत करती है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि हृदय रोगों (कार्डियो वैस्कुलर डिजिज) विश्व में होने वाली मौतों का प्रमुख कारण हैं। हृदय रोग से विश्व में वर्ष 1990 में जहां 1.21 करोड़ मौतें हो रही थीं, वहीं यह आंकड़ा 2021 में बढक़र 2.05 करोड़ हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट में भी दिल से जुड़ी बीमारियों को मौतों का सबसे बड़ा कारण बताया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में विश्व में 1.79 करोड़ मौतें हृदय से संबंधित बीमारियों की वजह से हुई, इनमें से भी 85 प्रतिशत लोगों की जान केवल हार्ट अटैक और हार्ट स्ट्रोक के कारण गई। पहले हृदय रोग की आशंका एक उम्र के बाद मानी जाती थी लेकिन अब तो युवा और बच्चे तक इसके शिकार हो रहे हैं। भारत में कम उम्र मेंं ही लोग हृदय रोग से पीडि़त हो रहे हैं।
डॉक्टर खराब खानपान, शारीरिक निष्क्रियता, तंबाकू सेवन और शराब पीने को हृदय रोग और स्ट्रोक के सबसे महत्वपूर्ण व्यावहारिक जोखिम मानते हैं। ऐसे व्यवहारगत जोखिम कारकों के प्रभाव लोगों में बढ़े हुए रक्तचाप, बढ़े हुए रक्त ग्लूकोज, बढ़े हुए रक्त लिपिड, और अधिक वजन और मोटापे के रूप में नजर सकते हैं। डॉक्टरों का कहना है कि इन जोखिम कारकों को प्राथमिक देखभाल सुविधाओं में मापा जा सकता है और इनसे दिल के दौरे, स्ट्रोक, दिल की विफलता और अन्य जटिलताओं के बढ़ते जोखिम का संकेत मिलता है।
डॉक्टर कहते हैं कि तंबाकू का सेवन बंद करने, आहार में नमक कम करने, अधिक फल और सब्जियां खाने, नियमित शारीरिक गतिविधि और शराब के हानिकारक उपयोग से बचने से हृदय रोग के जोखिम को कम किया जा सकता है लेकिन लोग इस ओर से साफ तौर पर लापरवाह दिखाई पड़ते हैं। लोगों में जहां शराब जैसे नशे बढ़ रहे हैं और वहीं आराम तलब जिंदगी के प्रति रूझान बढ़ रहा है। इसी से समस्या बढ़ रही है।
डॉक्टर मानते हैं कि हृदय संबंधी जोखिम को कम करने और इन स्थितियों वाले लोगों में दिल के दौरे और स्ट्रोक को रोकने के लिए उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हाई कोलेस्ट्रोल का उपचार आवश्यक होता है लेकिन इसके प्रति आम तौर पर लापरवाही दशाई जाती है। यहां तक कि लोग सीने के केंद्र में दर्द या बेचैनी, बांहों, बाएं कंधे, कोहनी, जबड़े या पीठ में दर्द या परेशानी, सांस लेने में तकलीफ, उलटी, चक्कर आने या बेहोशी, ठंडा पसीना आने जैसे सामान्य लक्षणों को भी नजरअंदाज कर जाते हैं।
उच्च रक्तचाप या हाइपरटेंशन भी हृदय रोग की वजह सकता है लेकिन हैरानी है कि लोग इसके प्रति भी जागरूक और गंभीर नहीं हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च-नेशनल सेंटर फॉर डिजीज इंफॉर्मेटिक्स एंड रिसर्च के एक राष्ट्रीय अध्ययन से खुलासा हुआ है कि उच्च उक्तचाप से पीडि़त होने के बावजूद 70 प्रतिशत से अधिक लोग इस बारे मेंं नहीं जानते। यह अध्ययन 10,593 वयस्कों पर आधारित था, इनमें से 28.5 प्रतिशत लोगों का रक्तचाप उच्च पाया गया। 27.9 प्रतिशत लोगों को अपने उच्च रक्तचाप से ग्रसित होने के बारे मेंं पता था जबकि 72.1 फीसदी इससे अनजान थे। उच्च रक्तचाप के प्रति जागरूक पाए गए 14.5 फीसदी का इलाज चल रहा था। सर्वेक्षण मेंं शामिल 47.6 फीसदी लोगों ने स्वीकारा कि उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी भी उच्च रक्तचाप का परीक्षण नहीं कराया।
डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट के अनुसार हृदय रोगों से दुनिया की कम से कम तीन-चौथाई मौतें निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहने वाले लोगों को अक्सर इसके जोखिम कारकों वाले लोगों की शीघ्र पहचान और उपचार के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रमों का लाभ नहीं मिलता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जो लोग हृदय और अन्य गैर-संचारी रोगों से पीडि़त हैं, उनकी प्रभावी और न्यायसंगत स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुंच कम है जो उनकी जरूरतों को पूरा करती हैं। परिणामस्वरूप, इन देशों में कई लोगों को बीमारी के बारे मेंं अक्सर देर से पता चलता है और लोग हृदय रोग और अन्य गैर-संचारी रोगों से कम उम्र में मर जाते हैं। हृदय और अन्य गैर-संचारी रोगों पर होने वाला खर्च गरीबी को बढ़ाने में भी योगदान दे रहा है। ये रोग व्यापक आर्थिक स्तर पर निम्न और मध्यम आय वाले देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर भारी बोझ डालते हैं। ऐसे देशों में भारत भी शामिल है।
एक ओर गरीबी के कारण लोग स्वास्थ्य के प्रति गंभीर नहीं होने के कारण इलाज नहीं करवा पाते, वहीं शराब, धूम्रपान जैसी आदतों को नहीं छोड़ पाना औरर मोटापा एवं शुगर का बढऩा भी हृदय रोग को बढ़ाने में मददगार साबित हो रहा है।
डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों ने 2013 में एनसीडी की रोकथाम और नियंत्रण के लिए वैश्विक कार्य योजना 2013-2020 सहित जरूरी एनसीडी बोझ को कम करने के लिए वैश्विक तंत्र पर सहमति व्यक्त की थी। इस योजना का लक्ष्य नौ स्वैच्छिक वैश्विक लक्ष्यों के माध्यम से 2025 तक एनसीडी से होने वाली असामयिक मौतों की संख्या को 25 प्रतिशत तक कम करना है। इनमें से दो लक्ष्य सीधे हृदय रोग को रोकने और नियंत्रित करने पर केंद्रित हैं। डब्ल्यूएचओ इस पर पूरी गंभीरता से काम कर रहा है लेकिन वल्र्ड हार्ट फैडरेशन की एक रिपोर्ट को मानें तो वर्ष 2010 की तुलना में 2025 तक हृदय रोगों से समय पूर्व मृत्यु दर को 25 फीसदी तक कम करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करना कठिन लग रहा है। जब तक लोग हृदय रोग के प्रति गंभीर एवं सचेत नहीं होते और जब तक अपना ख्याल खुद नहीं रखेंगे, तब तक ऐसे किसी भी लक्ष्य को अर्जित करने में बाधाएं आएंगी। आम लोगों मेंं हृदय रोग, उच्च रक्तचाप के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान, शराब के सेवन जैसे कारणों को भी दूर करना होगा। किसी भी बीमारी को जादू के जोर से खत्म नहीं किया जा सकता, इसके लिए समन्वित प्रयासों की जरूरत है। इस काम में सबको आगे बढक़र योगदान देना होगा।